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भटकती आत्मा भाग - 2




भटकती आत्मा भाग –2

उसकी चेतना जब वापस आई तो उसने अपने आप को एक आदिवासी बस्ती में एक मैदान में पाया l आश्चर्य चकित सा वह इधर-उधर देखने लगा l कहां गया वह घना जंगल जहाँ उसकी चेतना विलुप्त हुई थी l यहां बस्ती के बीच में इस मैदान में है अब वह l वहां से यहां कैसे आया ? निस्सहाय और भयाक्रांत होकर उसने इधर-उधर अपनी दृष्टि घुमाई l सामने खपरैल के घरों की एक कतार थी l रजनी शायद अपने यौवन पर थी l उसने एक घर के समीप जाकर उसके कपाट का साँकल खटखटाया l कुछ देर के बाद अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला l तँद्रिल आंखों से निहारते हुए उसने कहा - "क्या बात है, आप कौन हैं बाबू और कहां से आ रहे हैं अभी"?


इतने सारे प्रश्नों की बौछार जब सौरभ के ऊपर पड़ी तो घबड़ा गया वह l कुछ जवाब देते ना बना तो वह हकलाने लगा और अनचाहे मन से ही उसके प्रश्नों का उत्तर दे दिया - " मैं रांची से पर्यटन पर आया था मेरे बहुत से साथी भी थे मेरे साथ l सूर्यास्त की लुभावनी दृश्यावली देख कर सब लोग नेतरहाट विद्यालय में रहने के लिए चले गए,मैं अकेला मैगनोलिया पॉइंट पर छूट गया l जंगल में भटकता हुआ मैं यहां तक पहुंच सका हूं"|


  " नहीं बाबू यहां कोई अकेले और आसानी से नहीं पहुंच सकता | जानते हो बाबू यह स्थान मैगनोलिया पॉइंट से लगभग 1000 फीट नीचे है l इस बस्ती में उस स्थान से मात्र इसी बस्ती का कोई आदमी आ सकता है" - उस वृद्ध ने कहा |


     "हां एक रहस्यमय बात जल्दी बाजी में कहना तो मैं भूल ही गया"| सौरभ ने थरथराते हुए कहा ल


    "आओ बाबू अंदर चले आओ l हाथ पैर धो कर बैठ जाओ, तब बताना" - वृद्ध ने कहा |


    सौरभ वृद्ध के आमंत्रण पर उनके घर के अंदर प्रवेश करता है l घर बहुत साधारण था l मिट्टी का बना हुआ खपड़ैल मकान था वो,जिसमें एक चिराग जल-जल कर मंद प्रकाश फैलाता हुआ आदिवासी वृद्ध के वैभव का रहस्य उद्घाटन कर रहा था l रस्सी से निर्मित एक खाट पर बैठकर सौरभ ने सरसरी दृष्टि से कमरे की सारी वस्तुओं को देखा l वैभव के नाम पर मिट्टी का बना एक कोठी (इसमें अनाज रखा जाता है गांव में) शान से खड़ा था l मिट्टी के तीन घड़े थे तथा कुछ अन्य छोटी-छोटी वस्तुएं थी l अल्युमिनियम के एक पात्र में वृद्ध पानी लेकर आ पहुँचा था l शायद इस घर में वह वृद्ध अकेले ही निवास करता था l सौरभ ने उसके हाथ से पानी लेकर अपने हाथ पैर धोए और फिर आकर खाट पर बैठ गया ल


वृद्ध ने कहा - "बाबूजी कुछ खाओगे न, तुम तो भूखे ही होगे"|
  सौरभ - "नहीं बाबा मैं अभी नहीं खाऊंगा इतनी रात में आपने मुझ शरण दिया यही पर्याप्त है, वरना शहर में तो कोई दरवाजा भी नहीं खुलता l शहर के लोग इतने भले नहीं होते"|


  वृद्ध ने कहा - "हां बाबू तुम ठीक ही कहते हो,शहरी लोगों के मन में खोट होता है,सौ बातों में नब्बे-निन्यानवे तो वे झूठ ही बोलते हैं l अब तुम अपने बारे में ही सोचो ना बाबू,तुमने कैसा झूठ बोला है कि मैगनोलिया पॉइंट से पूछते हुए, भटकते हुए,खोजते हुए, यहां तक अकेले ही चला आया"|


सौरभ - "हां बाबा मैंने घबड़ाहट में आपसे झूठ बोला है l वास्तव में मैं जंगल में भटक रहा था रजनी की बढ़ती उम्र को देखकर मैं भयभीत भी हो रहा था उसी समय अचानक मेरे सामने से एक घोड़ा गुजरा जिस पर एक आपकी बिरादरी का कोई युवक बैठा था तथा दूसरी एक अंग्रेज लड़की सवार थी".........


ओ अच्छा अब समझा,वही अश्वारोही तुमको यहां तक पहुंचा गया होगा"|
  सौरभ की बात बीच में काटते हुए ही बूढ़े बाबा ने कहा |


  सौरभ - "आपने कैसे जाना बाबा"?


  वृद्ध - " मैं... मैं भला क्यों नहीं जानूँगा वे अश्वारोही प्रेत-योनि में भटक रहे हैं, परंतु दिल के बहुत दयालु हैं; किसी को भी आपदा में पड़े देखकर मदद कर दिया करते हैं"|


   सौरभ - " मुझे बताइए बाबा क्या रहस्य है यह, मुझे बताइए ना"|

वृद्ध - "पहले कुछ खा पी लो तब सुना दूंगा, इतनी जल्दी क्या है"|

सौरभ - "नहीं बाबा मुझे असमय में खाने की आदत नहीं है,सवेरे खा लूंगा तथा नेतरहाट विद्यालय की ओर प्रस्थान करुंगा l समय तो वास्तव में बहुत कम है, इसलिए मुझे इस रहस्यमय घटना को बता दीजिए"|

    वृद्ध - "तुम्हें नींद आ रही होगी,सो जाओ सवेरे मैं बता दूंगा"|
   सौरभ - "नहीं बाबा मेरी नींद काफूर हो गई,यदि आपको कष्ट न हो तो सुना ही दीजिए"|


    वृद्ध - " मुझे कष्ट क्यों होगा ? वैसे भी बूढ़ा होने के कारण मुझे कम ही नींद आती है | तुम्हारे आने के पूर्व भी नींद को ही बुला रहा था; रूठी हुई निंदिया तो न आई लेकिन तुम आ गए l चलो अच्छा ही हुआ जो नींद नहीं आई थी"|
   सौरभ - "बाबा आप अकेले रहते हैं क्या यहां"?

   वृद्ध - "हां मैं अकेला ही हूं | मेरे परिवार की परंपरा रही है,बड़े भाई को कुँवारा ही रहना पड़ता है l यह परंपरा आज से लगभग 100 वर्ष पहले से चली आ रही है"|

   सौरभ - "ऐसा क्यों बाबा"|
   वृद्ध - देखो तुम जिस घटना की चर्चा कर रहे थे वह घटना हमारे खानदान से ही संबंधित है | 100 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों में से एक व्यक्ति के 2 पुत्र थे, बड़ा लड़का मनकू मांझी था जो एक अंग्रेज कलेक्टर की बेटी मैगनोलिया के प्रेम-पाश में ऐसा बंधा की दोनों के प्रेम की चरम परिणति पर्वत की चोटी से गिरकर कंदराओं के आगोश में हुई l उसी याद को ताजा रखने के लिए अभी भी हमारे परिवार के बड़े लड़के को कुंवारा रहना पड़ता है,तथा मैगनोलिया के स्मारक के रूप में सूर्यास्त की दृश्यावली का केंद्र स्थल "मैगनोलिया पॉइंट" के नाम से प्रसिद्ध है"|


  सौरभ - "यदि इस नियम का कोई उल्लंघन करे तो"?

    वृद्ध - "तो उसकी जिंदगी भी उसी कंदरा की भेंट चढ़ जाती है l मतलब यह कि आयु रहते हुए भी वह असमय मौत के मुंह में समा जाता है"|
  सौरभ - "अच्छा बाबा उन प्रेमी-युगल की गाथा सुनाइए जिनके प्रेम की यादगार यह मैगनोलिया पॉइंट है"|


   उस वृद्ध के होठों में कम्पन हुआ और उसके होठों से शब्द निकल कर घर के सूने वातावरण में बिखरने लगे जिसे सौरभ अपने कर्ण रन्ध्रों में स्थान देने लगा |
                             
          क्रमशः

   निर्मला कर्ण




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3 Comments

Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:50 PM

बहुत खूब

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Alka jain

15-Jul-2023 02:51 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

14-Jul-2023 12:11 AM

👏👌

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